किताबों का मूल्य
            पहली बार चौबे सर से मिलने के बाद मुझे समझ आया था कि किताबें केवल परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करके भारी पैकेज के लिए नहीं होती हैं. किताबें समय व्यतीत करने का एक सकारात्मक साधन होने के साथ-साथ, नई सोच पैदा करके और जीवन के विविध आयामों से परिचित कराके जीवन निर्माण में भी योगदान देती हैं.
            दुर्भाग्यवश, अधिकतर अभिभावक और शिक्षक बच्चों को किताबों का यह पहलू बताते ही नहीं. शायद वे स्वयं ही नहीं जानते. यही कारण है कि बच्चे किताबें तभी तक पढ़ते हैं जब तक उनकी नौकरी नहीं लग जाती. बल्कि, जब दूसरों को किताबें पढ़ते देखते हैं, तो उन्हें आश्चर्य होता है. जैसे कि मेरे कई मित्र और रिश्तेदार मुझे जब किताबें पढ़ते देखते हैं, तो पूछते हैं कि, "अब क्यों पढ़ रहे हो? अब तो तुम नौकरी भी नहीं करते?" मुझसे यही प्रश्न तब भी पूछते थे जब मेरी नौकरी लग गई थी. उनमें से कुछ को तो मैं किताबों का मूल्य समझा पाया. बाक़ी अभी भी यही सोचते रहते हैं कि मैं किताबें क्यों पढ़ता हूँ.